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पिछले 5 साल में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा सरेंडर किया – दीपेन्द्र हुड्डा

किसानों की आमदनी दोगुनी होना तो दूर किसानों पर कर्जा दोगुना हो गया – दीपेन्द्र हुड्डा |

सरकार की किसान विरोधी नीतियों और रवैये से देश के किसान चिंतित और फिर आंदोलन की राह पर– दीपेन्द्र हुड्डा |

सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने आज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मुख्यालय पर आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि हाल में कृषि मंत्रालय की स्टैंडिंग कमेटी की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। जिससे पता चलता है कि पिछले 5 साल में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने बजट का 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा सरेंडर कर दिया। इससे साबित हो गया कि कृषि मंत्रालय का किसान कल्याण से कोई वास्ता नहीं है। उन्होंने सवाल किया कि क्या ये 1 लाख करोड़ का कृषि बजट इसलिये सरेंडर किया गया कि कार्पोरेट घरानों के और कर्जे माफ हों और किसानों पर मुश्किलें बढ़ें? ये आंकड़ा किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने वाला और जो जख्म सरकार ने देश के किसानों को दिये हैं उन्हें फिर से हरा करने वाला है। उन्होंने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा सरकार के शासन काल में 2014 से 2022 तक 1 लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की। यानी हर रोज 30 किसान आत्महत्या कर रहे हैं |

इस 1 लाख करोड़ रुपए से कर्ज में डूबे किसानों राहत देकर आत्महत्या से रोका जा सकता था। किसान कायर नहीं हैं, वो आत्महत्या जैसा कठोर निर्णय तभी करता है जब उसके सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। 5 साल से देश में कर्ज में डूबे हुए किसान आत्महत्या को मजबूर होते रहे लेकिन भारत सरकार का कृषि मंत्रालय लाखों करोड़ रुपया चुपचाप सरेंडर करता रहा। दीपेन्द्र हुड्डा ने याद दिलाया कि यूपीए सरकार ने किसानों के लिए 72000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी करके किसानों को राहत देने का काम किया था। लेकिन पिछले 10 वर्ष में इस सरकार ने किसानों का एक पैसा कर्ज माफ तो किया नहीं बल्कि बड़े-बड़े उद्योगपति घरानों के साढ़े 14 लाख करोड़ के कर्जे माफ कर दिए। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि ये सरकार किसानों को लगातार जख्म दे रही है फिर उसे कुरेद-कुरेद कर देखती है कि जख्म कितना गहरा है इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात और कोई नहीं हो सकती। उन्होंने मांग करी कि सरकार बताए कि किसानों के हित का पैसा सरेंडर क्यों किया गया। इसके लिये कौन जिम्मेदार है। क्या कृषि मंत्रालय द्वारा सरेंडर किये गये इस 1 लाख करोड़ रुपयों से भी उन्हीं धनाढ्य लोगों का कर्जा माफ किया जायेगा, जिनका पहले भी लाखों करोड़ का कर्जा माफ हुआ है।

सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने आगे कहा कि सरकार कागजों में बढ़ा चढ़ा कर बजट दिखा रही है, लेकिन खर्च घटाती जा रही है जो किसानों के साथ छल के सिवा कुछ नहीं है। क्योंकि ये बजट खर्च ही नहीं हो रहा। जो कृषि बजट खर्च हो रहा है उसमें निरंतर गिरावट आ रही है। उन्होंने बताया कि 2020-21 में यह खर्च कुल बजट का 4.41 प्रतिशत था, जो 2021-22 में घटकर 3.53 प्रतिशत हो गया। 2022-23 में यह 3.14 प्रतिशत तो पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में यह 2.57 प्रतिशत रह गया। उन्होंने कहा कि 2022 तक किसान की आमदनी दोगुनी करने का वादा भी एक बहुत बड़ा छल निकला। किसान की आमदनी तो दोगुनी हुई नहीं उसपर कर्जा दोगुना हो गया।

अपनी बात स्पष्ट करते हुए उन्होंने भारत सरकार के आंकड़ों के हवाले से बताया कि एनएसएसओ के अनुसार 2015-16 में किसान की सालाना आय 8000 रुपये प्रति माह थी। अगर महंगाई सूचकांक के हिसाब से बढ़ाते हुए इसे डबल करके देखा जाये तो 2022 तक किसानों की आय 22000 रुपए प्रति माह हो जानी चाहिए थी। लेकिन किसानों की आय सिर्फ 10200 रुपए प्रति माह तक ही पहुंची। आमदनी दोगुनी होना तो दूर किसानों पर कर्जा दोगुना हो गया। किसानों पर कर्ज 10 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 18 लाख करोड़ पहुँच गया। सरकार ने आंकड़े भी देने बंद कर दिये। 2018-19 में जो अंतिम आंकड़े आये उससे पता चलता है कि 2013-14 के मुकाबले 60 प्रतिशत किसानों पर कर्जा बढ़ गया।

उन्होंने कहा कि सरकार ने 1 लाख करोड़ रुपये का जो बजट सरेंडर किया है उससे किसानों की एमएसपी की मांग को काफी हद तक पूरा किया जा सकता था। किसानों की यही मांग थी कि एमएसपी की गारंटी मिले। सभी फसलों पर एमएसपी मिले और सभी किसानों को मिले। इसी मांग को लेकर किसानों ने एक साल से ज्यादा समय तक आंदोलन किया। सरकार के अहंकार के चलते इस आंदोलन में 750 किसानों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ी। उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने खुद माना है कि देश के 80 प्रतिशत किसान को गेहूं और 76 प्रतिशत किसानों को धान पर एमएसपी नहीं मिलती। यानी अधिकतर किसानों को एमएसपी नहीं मिलती। बीजेपी सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर 50 प्रतिशत मुनाफा देने के वादे पर भी किसानों को छलने का काम किया है।

दीपेन्द्र हुड्डा ने यूपीए सरकार और मौजूदा बीजेपी सरकार के 10 साल की तुलना करते हुए बताया कि 10 साल की यूपीए सरकार के समय न्यूनतम समर्थन मूल्य में रिकार्ड बढ़ोत्तरी हुई, जिसकी तुलना में इस सरकार ने एक तिहाई बढ़ोत्तरी भी नहीं की। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार ने गेंहू का न्यूनतम समर्थन मूल्य 119% बढ़ाया जबकि मौजूदा सरकार ने 47% ही बढ़ाया। इसी तरह UPA सरकार ने धान का MSP 134% बढ़ाया तो मौजूदा सरकार ने 50%, उड़द की दाल 205% मौजूदा सरकार ने 52% और UPA सरकार ने तुअर दाल का MSP 209% बढ़ाया तो मौजूदा सरकार ने 52% ही बढ़ाया। इस सरकार की नीतियां शुरू से ही किसान विरोधी रही हैं। जब दुनिया के मार्केट में गेहूं, धान का अच्छा भाव मिल सकता है लेकिन सरकार ने निर्यात पर बैन लगा दिया। जब आयात करना होता है तो सारे कायदे-कानून ताख पर रखकर आयात खोल दिया जाता है। इस तरह किसान हर तरह से सरकार की दोहरी मार का शिकार हो रहा है।

सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि आज एक बार फिर देश का किसान चिंतित है। किसान संगठन फिर से आंदोलन की राह पर हैं। क्योंकि, किसान आंदोलन के समय किसान संगठनों और सरकार के बीच एमएसपी गारंटी और किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने आदि का जो समझौता हुआ था उसे भी सरकार ने नहीं माना। आंदोलन में शहीद हुए 750 किसानों के परिवारों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया। लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचलने वाले अपने मंत्री पर कोई कार्रवाई नहीं की। जो सरकार के अहंकार और किसान विरोधी चेहरे का प्रतीक है। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सरकार कम से कम किसानों से किये अपने वायदे पूरे करे।

 

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