कम्प्यूटेशनल थिंकिंग से बदल रहा संसार। कम्प्यूटेशनल सोच द्वारा भारतवर्ष की नई तस्वीर गढ़ने का प्रयास
चंडीगढ़, 15 जनवरी, 2020:
अगर भारत की निगाहें 5 ट्रिलियन (350 लाख-करोड़) अर्थव्यवस्था की ओर हैं तो हमारे छात्रों को कम्प्यूटेशनल सोच विकसित करने की ज़रूरत है। उन्नत देशों की अर्थव्यवस्था इसीलिए मजबूत है क्योंकि वहां के लोग इस कला में माहिर हैं। अमेरिका के बर्कले शहर में स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से आईं टेक्नालाजी एवांजेलिस्ट उर्वी गुगलानी भारत में कम्प्यूटेशनल थिंकिंग की वर्कशाप के माध्यम से स्कूली बच्चों को प्रशिक्षित कर रही हैं। बर्कले स्थित कैलिफोर्निया विश्वविधद्यालय, कंप्यूटर विज्ञान में दुनिया में एक शीर्ष रैंकिंग वाला सार्वजनिक विश्वविद्यालय है जिसे 150 वर्षों में 22 नोबेल पुरस्कार विजेता और 350 से अधिक ओलंपिक पदक विजेता देने का श्रेय प्राप्त है।
उर्वी कम्प्यूटेशनल थिंकिंग की अवधारणा का प्रचार कर रही हैं, जो छात्रों को नए डिजिटल युग में समस्याओं को हल करने के लिए तार्किक कौशल विकसित करने में सहायक है।
साहित्य से लेकर कानूनी मामलों तक, सब जगह कंप्यूटरीकरण हो रहा है। कंप्यूटर के आगमन के बाद आटोमेशन के कारण बहुत सी नौकरियां खत्म हुई हैं। आटोमेशन के कारण सिर्फ काल सेंटर ही नहीं बल्कि किराना स्टोर भी प्रभावित हुए हैं। दूसरी तरफ उन लोगों के लिए बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा हो रही हैं जो कंप्यूटर के उपयोग में पारंगत हैं। मैकिन्ज़ी के अनुसार, आटोमेशन से होने वाले परिवर्तनों के कारण लगभग 30% नौकरियां ऐसी हैं जिनकी रूपरेखा भी अभी नहीं बनी है।
“यह समझना आवश्यक है कि कॉमन सेंस के हिसाब से कंप्यूटर लगभग “नासमझ” हैं, वे खुद कुछ नहीं कर सकते, इसके लिए उन्हें उचित कमांड चाहिए। उदाहरण के लिए यदि आप किसी रोबोट को टुथब्रश पर टुथपेस्ट लगाने को कहें तो वह तभी रुकेगा जब उसे इसका निर्देश दिया जाए वरना वह टुथपेस्ट की पूरी ट्यूब खाली कर देगा, जबकि कोई छोटा बच्चा भी ऐसा नहीं करेगा। कंप्यूटर को सटीक निर्देश दिए जाने की आवश्यकता होती है। कम्प्यूटेशनल सोच इसी कौशल का नाम है,” उर्वी बताती हैं। उनका कहना है कि कम्प्यूटेशनल थिंकिंग छात्रों को अधिक रोजगार-फ्रेंडली बनाएगी और उनका जीवन स्तर बेहतर बनाएगी।
सीएल अग्रवाल डीएवी स्कूल की प्रिंसिपल श्रीमती सुनीता रान्याल ने कहा, “भले ही सभी छात्र स्वाभाविक रूप से समय के साथ कम्प्यूटेशनल सोच विकसित करते हैं, लेकिन उन्हें कम उम्र में औपचारिक कम्प्यूटेशनल सोच का प्रशिक्षण देना उनके कौशल को कई गुना बढ़ा सकता है। मुझे खुशी है कि उर्वी ने हमारे छात्रों और शिक्षकों के लिए ऐसा शानदार सत्र आयोजित किया और बताया कि कैसे इसे मुख्य पाठ्यक्रम का एक अभिन्न अंग बनाया जा सकता है। उसने छात्रों को मनोरंजक ढंग से नये कॉन्सेप्ट सिखाए। चूंकि कम्प्यूटेशनल थिंकिंग की बुनियादी अवधारणाएं अब उनके लिए स्पष्ट हैं, यह छात्रों को अपने कौशल को और विकसित करने में सक्षम बनाएगा।” आज मानव मंगल मोहाली, यमुनानगर, सहारनपुर के स्कूलों में भी सेमिनार हुआ
कम्प्यूटेशनल थिंकिंग हमें इस काबिल बनाती है कि हम समस्याओं के समाधान के लिए कंप्यूटर को सटीक निर्देश दे सकें। यह छात्रों को तर्क की बेहतर समझ के साथ उनको सामान्य पढ़ाई में भी सहायक होता है और विद्यार्थी परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं। कंप्यूटेशनल थिंकिंग उनके रचनात्मक कौशल को विकसित करने में मदद करता है और उनकी अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावी बनाता है। नतीजतन, बच्चे एल्गोरिथ्म क्षमताओं में 16% अधिक है और तर्क और अमूर्त सोच में 75% ज़्यादा अच्छा प्रदर्शन करते हैं।
कम्प्यूटेशनल सोच तेजी से दुनिया भर के स्कूलों के कोर्स में शामिल की जा रही है। इसे जर्मनी में सन् 2004 में, बेल्जियम में 2007 में, ब्रिटेन में 2014 में, न्यूजीलैंड में 2016 में, अमेरिका में 2016 में, कनाडा में 2017 में, दक्षिण कोरिया में 2018 में तथा जापान और सिंगापुर में इसी वर्ष सन् 2020 में स्कूल कोर्स में शामिल किया गया है। कम्प्यूटेशनल सोच किसी को रातों-रात नहीं बदल सकती, यह कौशल धीरे-धीरे विकसित होता चलता है और फिर कक्षा सिर्फ अध्यापक द्वारा चलने के बजाए विद्यार्थियों की जरूरत के हिसाब से चलने लगती है। इसका लाभ यह होता है छात्रों को सवाल करने, जाँच करने, इस ज्ञान को लागू करने और नया सृजन करने के अवसर मिल जाते हैं। उर्वी विद्यार्थियों के दिमाग के दरवाजे खोल रही है और अब इन छात्रों के लिए कम्प्यूटेशनल सोच एक सपना नहीं रह गया है बल्कि उनके जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाएगा।
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